Friday, December 23, 2011

क्योंकि तब बात दूर तलक जाएगी!


पिछले कुछ समय से देश में काले धन का मुद्दा खासा चर्चा में है। लेकिन चर्चा सिर्फ विदेशों के बैंकों में जमा काले धन की ही हो रही है। देश में जमा काले धन और उसके स्रोतों का कहीं जिक्र नहीं हो रहा है। देश को आजादी मिलने के बाद से लेकर आज तक आर्थिक मोर्चे पर जिन गंभीर समस्याओं से मुकाबिल होना पड़ रहा है और उनके लिए जो महत्वपूर्ण कारण गिनाए जा सकते हैं, उनमें एक है काला धन। हालांकि समय-समय पर इस समस्या से निजात पाने के उपाय भी किए जाते रहे हैं लेकिन समस्या लगातार बढ़ती गई है। यानी मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की। इसकी बड़ी वजह रही राजनीतिक नेतृत्व में इच्छाशक्ति का अभाव। सार्वजनिक जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है जो काले धन की बीमारी से बचा हो। रिश्वतखोरी के अलावा हवाला, तस्करी, कर चोरी का भी अवैध धन के उत्पादन में कम योगदान नहीं है। इस तरह देश के संसाधनों और आम लोगों की मेहनत की कमाई को लूटने का खेल बेहद संगठित तौर पर यों तो देश की आजादी के बाद से ही खेला जा रहा है लेकिन दो दशक पूर्व लागू हुई नव उदारीकरण की अर्थनीति के बाद इस खेल में हैरान करने वाली तेजी आई है। इस तरह के हथकंडों से अर्जित धन को छिपा कर या बेनामी या फर्जी नामों से रखा जाता है। इस धन का काफी बड़ा हिस्सा विदेशों के उन बैंकों में भी जमा होता रहा है जो खाताधारी की पहचान गुप्त रखने की गारंटी देते हैं। स्विट्‌जरलैंड के कुछ बैंक इस मामले में दुनिया भर में बदनाम हैं लेकिन अब कई और देशों में भी यह 'सुविधा' उपलब्ध है।
 कुछ दिनों पहले एक अमेरिकी संस्था 'ग्लोबल फाइनेंशियल इंटिग्रिटी' ने भारत के बारे में 1948 से 2008 तक की स्थिति पर जारी अपनी एक शोध रिपोर्ट में कहा है कि आजादी के बाद से भारत को कर चोरी और भ्रष्टाचार के जरिए अब तक 21 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है तथा 1991 के बाद भारत ने जिस तेजी से आर्थिक प्रगति की है, उतनी ही तेजी से भ्रष्टाचार भी बढ़ा है। कुछ समय पहले स्विस बैंक  एसोसिएशन ने भी अपनी एक रिपोर्ट में इस तथ्य की पुष्टि की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक काला धन जुटाने के मामले में भारत दुनिया भर में सबसे अव्वल है और उसका कुल 65,223 अरब स्र्पए का काला धन स्विस बैंकों में जमा है। जबकि दुनिया के सबसे अमीर देश अमेरिका का स्थान इस मामले में काफी पीछे है। जाहिर है कि यह स्थिति किसी देश की समृध्दि को नहीं बल्कि वहां की आर्थिक लूट, अवैध धंधों के फलने-फूलने और कर चोरी के पैमाने को बताती है। यह तथ्य भी गौरतलब है कि आजादी के बाद से जो काला धन भारत से बाहर गया उसमें से आधे से ज्यादा पिछले 15 वर्षों के दौरान गया है। इस अवधि में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन की भी केंद्र में सरकार रही है। लेकिन उसने भी इस सिलसिले को रोकने की दिशा में कुछ नहीं किया, पिछले लोकसभा चुनाव में इसे उसने मुद्दा बनाने की कोशिश भले ही की हो। पिछले कुछ दिनों से यह मांग फिर जोर पकड़ रही है कि देश का जो काला धन देश के बाहर के बैंकों में जमा है उसे वापस लाया जाए। लेकिन इस बारे में सरकार के रवैये से आम लोगों में अगर यह धारणा गहरे तक घर चुकी है कि विदेशों में जमा काले धन को वापस देश में लाने में सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट भी इसी तरह का अंदेशा जाहिर कर चुका है तो यह स्वाभाविक ही है।
 विदेशों में जमा काले धन के सवाल पर हाल ही में लोकसभा में विपक्ष के काम रोको प्रस्ताव पर हुई निरर्थक बहस से भी इस बात की पुष्टि हुई है। लगभग छह घंटे तक चली इस बहस में न तो विपक्ष की ओर से कोई नई बात कही गई और न ही सरकार की ओर से। दोनों ओर से वही सब कहा गया जिसे सुनते-सुनते लोगों के कान पक गए हैं। संसद में भारतीय जनता पार्टी  के प्रथम पुरुष लालकृष्ण आडवाणी के लंबे भाषण में वे ही सब बातें थीं, जो वे कालेधन के मुद्दे पर हाल ही में संपन्न अपनी देशव्यापी जनचेतना रथयात्रा के दौरान जगह-जगह पर कह रहे थे। सत्ता पक्ष की ओर से वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी उम्मीद के मुताबिक ऐसा कुछ नहीं कहा, जिसे नया कहा जा सके। अंतरराष्ट्रीय संधियों का हवाला देते हुए विदेशों में काला धन जमा करने वाले खातेदारों के नाम सार्वजनिक करने से इनकार करने के साथ ही उन्होंने विदेशों में जमा काले धन पर जल्द ही एक श्वेत पत्र लाने की बात कही जो कि पहले भी कही जा चुकी है। कहा जा सकता है कि इस मुद्दे पर विपक्ष की ओर से काम रोको प्रस्ताव के तहत सरकार को बहस के लिए बाध्य करना एक तरह से महज रस्म अदायगी थी, देश को यह दिखाने के लिए कि देखो, विपक्ष इस सवाल पर कितना गंभीर है।
 अगर ऐसा नहीं होता तो बहस सिर्फ विदेशों में जमा काले धन पर ही नहीं बल्कि देश में जो काले धन के तहखाने हैं, उन पर भी होती और होनी चाहिए। विदेशों में जमा भारत का काला धन बेशक एक गंभीर मुद्दा है लेकिन जितना पैसा विदेशी बैंकों में काले धन के तौर पर जमा है, उससे कई गुना ज्यादा काला धन देश के भीतर ही मौजूद है। देश में आम लोगों की मेहनत की कमाई को लूटने के इस संगठित खेल में भ्रष्ट राजनेता, भ्रष्ट नौकरशाह और बेईमान कारपोरेट घराने शामिल हैं। यह खेल कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 50 फीसदी हिस्से के बराबर काला धन देश में हर साल जमा हो रहा है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के वरिष्ठ प्रोफेसर अरुण कुमार की पुस्तक 'ब्लैकमनी इन इंडिया' के मुताबिक 'देश का जीडीपी लगभग 78 लाख करोड़ रुपए का है जबकि इससे अलग करीब 38 लाख करोड़ रुपए काले धन के तौर पर देश में हर साल उत्पादित हो जाते हैं। जाहिर है, यह खेल पूरे सिस्टम की भागीदारी के बगैर लंबे समय तक कतई नहीं खेला जा सकता। अगर हर साल यह 38 लाख करोड़ रुपए देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ जाएं तो हमारी आर्थिक विकास दर काफी बेहतर हो सकती है।'
 एक साल के भीतर देश में जो 38 लाख करोड़ रुपए का काला धन पैदा होता है, उसमें से महज चार लाख करोड़ रुपए विदेशी बैंकों में काले धन के रूप में जमा होते हैं। बाकी पैसे का निवेश तो देश में ही शेयर बाजार, रियल एस्टेट जैसे कारोबारों में होता है। चूंकि जो काला धन देश में रहता है उसी में से कुछ हिस्सा राजनीतिक दलों को चुनावी चंदे के रूप में मिलता है। कई धर्माचार्यों की व्यासपीठें भी आमतौर पर इसी काले धन के हिस्से से सजती हैं। इसलिए देश में काले धन के व्यवहार के बारे में न तो कोई राजनीतिक दल बोलता है, न ही कोई राजनेता इसके खिलाफ जनचेतना पैदा करने के लिए रथयात्रा निकालता है। भ्रष्टाचार को लेकर चिंतित रहने वाले तथाकथित सिविल सोसायटी के स्वयंभू अलमबरदार, धर्माचार्य और योग गुरु भी इस बारे में अपना मुंह खोलने से बचते हैं। क्योंकि उन्हें डर है कि इस बारे में जिक्र छेड़ा गया तो फिर बात दूर तलक जा सकती है। हाल में भाजपा के सभी सांसदों ने हलफनामे देकर घोषित किया है कि उनका विदेशों में कोई काला धन नहीं है। किसी ने यह घोषणा नहीं की है कि देश के भीतर भी उसने काले धन का कहीं निवेश नहीं कर रखा है। हालांकि राजनेताओं के ऐसे हलफनामों को दिखाने के दांतों से ज्यादा कुछ नहीं माना जा सकता। विदेशों में जमा काला धन तो वापस लाना चाहिए और इसके लिए सरकार को निश्चित रूप से कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए लेकिन देश के अंदर भी ऐसी कारगर व्यवस्था बनानी चाहिए, जिससे कि काला धन पैदा ही न हो। क्योंकि समस्या की बुनियादी वजह यही है।

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